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सड़क के किनारे खड़े बिजली के खंबो से लटके बिजली के ये बल्ब,
कितने असहाय प्रतीत होते है,
जिनका जलना बुझना दुसरो पर निर्भर है ।
किन्तु मैं , मैं क्यों अपने आप को इतना असहाय महसूस करती हुँ ,
मैं तो अपनी इच्छा की स्वामिनी हुँ ।
मैं तो किसी के द्वारा नियंत्रित नहीं की गयी हुँ,
हाँ, मैं भी तो उस सूरज की तरह बन सकती हुँ,
जो अपने उदय से अस्त होने तक दुनिया को प्रकाश मान करता है।
लोग कहते है सूरज अस्त हो गया,
पर सूरज दिृढता पुर्वक कहता है,
कि रात तुम मुझे कुछ देर के लिये ढक सकती हो पर हमेशा के लिये नही ।
मैं उदित होता रहुंगा,
और दुनिया को प्रकाशमान करता रहुंगा।
मैं कभी हार नही सकता॥
लोग कहते की दुनिया हमेशा चढ़ते सूरज को प्रणाम करती है,
पर सूरज जब अस्त होता है ,तो प्रकति के चेहरॆ की लालिमा क्यों बढ़ जाती है ,
क्योंकि प्रकति को ये विश्वास है,
कल फिर से नया सबेरा होगा,
पूरब में लाली छाएगी,
और वह फिर से एक नया गीत जाएगी॥
5 Comments
Anonymous
बहुत खूब
life@journey
Thanks
life@journey
Thanks for all the likes
Madhusudan
क्या बात।बेहतरीन लेखन।👌👌
malajoshisharma
Very nice and beautiful .